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परदेशी का लक्ष्य

भाग - 2


वो मैं और राधा नदी की तरफ जा रहे थे तो सोचा तुम भी साथ चलते घूम आते।

मेरे पास समय नहीं है मुझे पढ़ना है।

सुमी बिना कुछ कहे चली आई।

शशि के विवाह में बहुत गहमा गहमी थी विवाह की रस्में समय समय पर होती रहीं लेकिन मनुज केवल खास रस्मों में शामिल हुआ। 

कोई उसके बारे में पूछता तो बुआ जी कहती वह किसी बड़ी परीक्षा की तैयारी कर रहा है। सुमी की आँखे मनुज को ढूँढ़तीं। वह सोचती काश एक बार वह उससे मिल पाती, बातें कर पाती कितनी सारी बातें लेकर बैठी थी मन में कि मनुज आया है मैं उससे ढेर सारी बातें करूँगी। अपने दिल की बात बताऊँगी। बचपन की दोस्ती कब प्यार में बदल गई मैं खुद नहीं जान पाई। शशि से उसके बारे में पूछा करती तो शशि उसे छेड़ती - मैं मनुज  तेरे दिल का हाल कह दूँगी तो वह कहती- "मैं यूँ ही पूछ लेती हूँ आखिर बचपन में वह यहाँ आता था तो हमारे साथ कितनी मस्ती करता था।"  लेकिन सच तो यह है कि वह उसकी यादों से कभी दूर ही नहीं हुआ था।

राधा भी कह रही थी मनुज कितना बदल गया है बचपन में हमलोगों के साथ ही रहता था अब तो ऐसे लगता है कि वह हमें पहचानता ही नहीं। कहीं उसके जीवन में कोई और लड़की तो नहीं है,तो क्या हुआ वह बात तो कर ही सकता है।

सुमी के समझ में कुछ नहीं आता  था।

शादी धूमधाम से सम्पन्न हो चुकी थी।

आज बुआ जी वापस अपने घर जा रही थीं। सुमी और उसकी माँ उनसे मिलने आई हुई थी। सुमी ने अपने हाथों से शक्करपारे बनाये थे। मनुज को बचपन में माँ हाथ के शक्करपारे बहुत पसंद थे। आज उसने बड़े प्यार से बनाया था। 

बुआ जी -" ये क्या है बेटा?

सुमी-"बुआ शक्करपारे बनाये हैं। बचपन में मनुज को बहुत पसंद थे।"

अरे बेटा --अब वह तली भुनी चीजें नहीं खाता है। कहता है ये चीजें नुकसान करती हैं।"

सुमी जमीन की तरफ देखने लगी थी।

मनुज-" कोई बात नहीं माँ  रख लो!

सुमी को थोड़ा आश्चर्य हुआ।

मनुज के जाने के बाद सुमी उदास रहने लगी थी। बाद में उसने खुद को संभाला और अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया। 

छह साल बाद--

अब  सुमी गाँव बगल के कस्बे बैंक में मैनेजर हो गई थी।

घर में उसके विवाह की बात चल रही थी। विवाह का नाम सुनते ही उसे मनुज याद आ जाता लेकिन वह सुमित का व्यवहार याद कर खुद को समझा लेती।

आज वह बैंक से आई तो माँ ने कहा कि शशि की बुआ जी आई हुई हैं  चलो मिलकर आते हैं।

सुमी-"माँ आप चली जाओ आज मैं बहुत थकी हुई हूँ। मैं कल बैंक जाने के पहले बुआजी से मिल आऊँगी।

माँ- मैं उनके लिए पुए बना लूँ फिर जाती हूँ।

थोड़ी देर -

अरे कोई घर में है ---भाभी कहाँ हो?

सुमी बेटा बैंक से आ गई क्या?

सुमी बुआजी की आवाज सुनकर बाहर आती है।उसकी आँखें फटी रह जाती हैं साथ में मनुज भी है।

वह सोचती है मनुज यहाँ कैसे? पिछली बार आया था तो बात तक नहीं कि थी और आज  घर तक आ गया।

सुमी बुआ के पैर छूती है। माँ किचन से आकर बुआ से मिलती हैं दोनों को बैठक में ले जाकर बैठाती हैं।

सुमी उनके लिए चाय नाश्ते का इंतज़ाम करने किचेन में जाती है।

थोड़ी देर बाद वह चाय लेकर आती है।

बुआ जी-" बेटा तुमने बहुत स्वादिष्ट  शक्करपारे बनाये थे। मनुज ने सभी खा लिए थे मेरे लिए भी नहीं बचाया।

लेकिन बुआ---

भाभी मैं सुमी को अपनी बेटी बनाना चाहती हूँ। आपसे इसका हाथ मनुज के लिए माँग रही हूँ।

दीदी ये तो मेरा सौभाग्य है। घर बैठे इतना अच्छा रिश्ता मिल रहा है लेकिन मैं सोच रही हूँ कि एक बार सुमी और मनुज की भी मर्जी जान लें।

बुआ जी- मनुज को सुमी पसंद है भाभी! उसी के कहने पर मैं यहाँ आई हूँ।

बुआजी की बात सुनकर सुमी के दिल की धड़कन थम सी गई। 

तभी मनुज कहता है -" यदि सुमी मेरे बारे में कुछ पूछना चाहती है तो पूछ ले ताकि बाद में इसे किसी बात का अफसोस न रहे।"

बुआ जी और सुमी की माँ दूसरे कमरे में चली जाती हैं।

मनुज-" सुमी क्या तुम मेरी जीवन साथी बनना चाहोगी?

सुमी कहती है- तुम्हारे ऊपर भरोसा कैसे कर लूँ? बचपन की दोस्ती को ठुकरा दिया। शशि की शादी में मुझसे बात तक नहीं की।

मनुज-" एकबार मैं तुतुम्हारी सुंदरता देखकर कमजोर पड़ गया था सुमी लेकिन मुझे मुझे मेरा लक्ष्य भी पाना था उसे पाने के लिए मैंने कुछ सालों सबसे अलग हो गया था। तुम भी उनमें से ही थी। अब मैं डॉ बन गया हूँ। मैं तुम्हें भूला नहीं पर तुम्हें हर खुशी देने योग्य बनना चाहता था। तुम्हारे बिना मेरा सफर अधूरा रहेगा।अब तुम मेरी बात समझ गई होगी। उसने जेब से एक फोटो निकाला जो सुमी की थी।

उसने फ़ोटो दिखाते हुए कहा-"शशि दीदी की शादी में मैंने अपने मोबाइल से तुम्हारी पिक ले ली थी इसे मैं हमेशा अपने साथ रखता हूँ और जब तुम्हारी याद आती तो इसी से बात कर लेता।

परदेसी आखिर अपनी गाँव की गोरी  के पास आ ही गया - सुमी ने चहकते हुए कहा।


आता कैसे नहीं अपना लक्ष्य जो पूरा कर लिया मैंने!

अपनी सुमी के पास तो आना ही था न!

गाँव की गोरी अब बैंक मैनेजर बन गई है लेकिन है मेरी बचपन वाली मोटिल्ली सुमी।मनुज ने हँसते हुए कहा।

लेकिन अब तो मैं दुबली हो चुकी हूँ - सभी लोग कमरे में आ गए और हँसी खुशी का माहौल खुशनुमा हो गया।


स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'

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3 Comments

Fiza Tanvi

13-Nov-2021 02:47 PM

Good

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बेहतरीन...कहानी

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🤫

13-Nov-2021 02:32 AM

बेहतरीन रचना...👌

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